स्नान आदि के बाद आप सबसे पहले पूर्व दिशा की ओर मुख करके कुशा के मोटक पर अक्षत् से देव तर्पण करें। इसके बाद उत्तर की ओर मुख कर अपना जनेऊ गले में माला की तरह पहन लें। अब अन्त में जनेऊ दाएं कन्धे पर रख लें। सभी तर्पण की सामग्री लेकर दक्षिण की ओर मुख करके बैठ जाएं। अपने हाथ में जल, कुशा, अक्षत, पुष्प और काले तिल लेकर दोनों हाथ जोड़कर पितरों का ध्यान करते हुए उन्हें आमंत्रित करें। अपने पितरों का नाम लेते हुए आप कहें कृपया यहां आकर मेरे दिए जल को आप ग्रहण करें। जल पृथ्वी पर 5-7 या 11 बार अंजलि से गिराएं।